महर्षि मरीचि ब्रह्मा के अन्यतम मानस पुत्र और एक प्रधान प्रजापति है। इन्हें द्वितीय ब्रह्मा ही कहा गया है। ये हमेशा ब्रह्मा की ही तरह सृष्टि कार्य मैं लगे रहते है। कभी-कभी इन्द्रसभा मे उपस्तिथ होकर दण्डनीति का मंत्रित्व भी करते है। इनकी कई पत्नियों का वर्णन भी पुराणों में आता है। इसमें एक तो दक्षप्रजापति की पुत्री “संभूति” है और दुसरी “धर्म” नामक एक ब्राहाण की धर्मव्रता नाम की कन्या है। उन्होंने अपने पिताकी आज्ञा से अनुरूप पति की प्राप्ति के लिए बड़ी तपस्या की। जब महर्षि मरीचि को इस बात का पता चला तब उन्होंने इनके पिता से कहकर इन्हें पत्नी के रूप में ग्रहण किया। इनके सैकड़ों पुत्र थे, जिनमें कश्यप और मनु जैसे पुत्र है जिनकी वंश-परंपरा से यह सारा जगत परिपूर्ण और सुरक्षित है। इन्हें भगवान् का अंशाशावतार कहते है। इनमें भगवान् की पालनशक्ति का प्रकाश हुआ है। ब्रह्मा ने इन्हें पद्मपुराण के कुछ अंश सुनाये है। जैसे ब्रह्मा के पुत्रों में सनकादि निवृत्ति परायण है वैसे ही मरीचि आदि प्रवृति परायण है। इन्होंने ही मृगु को दण्डनीति की शिक्षा दी है। ये सुमेरु के एक शिखरपर निवास करते है और महाभारत में इन्हें चित्रशिखण्डी कहा गया है। ब्राह्ने पुष्कर क्षेत्र में जो यज्ञ किया गया था उसमें ये अच्छावाक् पद पर नियुक्त हुए थे। दस हजार श्लोकों से युक्त ब्रह्मपुराण दान पहले-पहल ब्रहा ने इन्हीं को किया था। वेदों में भी इनकी बड़ी चर्चा है और प्राय: सभी पुराणों में इनके चरित्र की चर्चा है।