ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष को साठ कान्याएँ हुई, उसमें से एक स्वधा नाम की कन्या का विवाह उन्होंने पितरों के साथ कर दिया। उसकी तीन पुत्रियाँ हुई जो गर्भ से नहीं पितरों के मन से हुई थी। वह तीनो भगवान् विष्णु के दर्शन के लिए श्वेतद्वीप गई वह उन्हें ब्रह्माजी के पुत्र सनत्कुमार से भेट हुई। वह सभी लोगों ने खड़े होकर सनत्कुमार का स्वागत किया परन्तु वह तीनो बहनें बैठी रह गयी जिसकी वजह से सनत्कुमार नाराज हो गए और तीनो बहनों को शाप दे दिया। बाद में तीनो की स्तुति करने पर वह प्रसन्न हो कर वरदान भी दे दिया और कहा कि तुम तीनों में जेष्ठ कन्या “मेना” हिमालय की पत्नी बनेगी, जिससे “पार्वती” का जन्म होगा। दुसरी “धन्या” नाम वाली कन्या राजा जनक की पत्नी होगी, जिससे “सीता” का जन्म होगा। तीसरी कन्या “कलावती” वृषभान की पत्नी होगी, जिससे “राधा” नाम की कन्या का जन्म होगा। पार्वती भगवान् शिव की पत्नी, सीता भगवान् राम की पत्नी एवं राधा भगवान् कृष्ण को प्राप्त करेगी। इस प्रकार शाप वरदान में परिवर्तित हो गए।
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